Credit Card Loan : युवा क्रेडिट कार्ड कर्ज में डूब रहे हैं, जबकि कार्ड जारी करने वाली फाइनेंशियल संस्थाएं अमीर हो रही।
भारत हो या अमेरिका सब जगह एक खास ट्रेंड कॉमन है। यहां कामकाजी आबादी खासकर युवा क्रेडिट कार्ड कर्ज में डूब रहे हैं, जबकि कार्ड जारी करने वाली फाइनेंशियल संस्थाएं अमीर हो रही हैं। क्रेडिट कार्ड की बढ़ती ब्याज दरों और चूक के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव अभियान में कार्ड की ब्याज दरों को लगभग 10% तक सीमित करने का वादा किया था। उन्होंने अस्थायी रूप से पांच वर्षों के लिए कामकाजी अमेरिकियों को राहत देने के लिए यह वकालत की है।
अब अमेरिका के दो सीनेटर राष्ट्रपति ट्रम्प को उनका वादा याद दिला रहे हैं और इसे पूरा करने के लिए कह रहे हैं। वे इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं, जबकि वहां क्रेडिट कार्ड पर औसत ब्याज दर महज 21.5% ही है। भारत में यह लगभग 46% है। अमेरिका का इतिहास बताता है कि ऐसा विधेयक पारित होने की संभावना नहीं है, क्योंकि ब्याज को 18% तक सीमित करने के उपाय बिना शोर किए ही समाप्त कर दिए गए हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि युवाओं में क्रेडिट स्कोर के बारे में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। देश में युवाओं को ऑनलाइन खरीदारी के लिए ‘अभी खरीदें, बाद में भुगतान करें’, नो कॉस्ट ईएमआई जैसी स्कीम्स बेची जा रही हैं, ये आदतें युवाओं को बिना वजह खरीदारी के लिए प्रेरित कर रही हैं। उनके क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट और बकाया राशि को बढ़ा रही है। जून 2024 तक क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट लगभग 2.7 लाख करोड़ रुपए तक बिगड़ गया। कोविड पूर्व मार्च 2019 में कुल कार्ड बकाया 87,686 करोड़ रुपए था। चूंकि क्रेडिट कार्ड उधारी किसी चीज को गिरवी रखे बिना मिलती हैं। इसकी एक लागत होती है।
यह समझ में आता है कि यह ऊंची ब्याज दर कार्ड :
कंपनियों को उन उपभोक्ताओं के नुकसान से बचाता है, जो खर्च की गई राशि को लौटाते नहीं हैं। लेकिन सवाल यह है कि किस कीमत पर? दूसरी ओर, कार्ड कंपनियां नए कार्ड जारी करती रहती हैं। मार्च 2021 में 6.20 करोड़ जारी हुए थे, जो सितंबर 2024 तक 10.61 करोड़ हो गए। अमेरिका में जो चर्चा हो रही है, वह यह है कि क्या सीमा लगाने से शायद उन लोगों के लिए नए कार्ड मिलना बंद हो जाएगा, जिनका क्रेडिट हिस्ट्री दागदार है? यदि ऐसा है, तो क्या यह उन्हें कर्ज के उन स्रोतों की ओर ले जाएगा जो कम रेगुलेटेड हैं और गलत हाथों में हैं। जैसे कि साहूकार, जिससे अन्य सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी। यदि ऐसा है, तो हमें एक देश के रूप में दोनों की जरूरत है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा कुछ सीमा लगाई जाए ताकि वास्तविक युवाओं को कुछ राहत मिल सके और कार्ड यूजर्स में कुछ अनुशासन हो, ताकि बैंक उन पर भरोसा करना शुरू कर दी
मैनेजमेंट टिप:
एक जिम्मेदार कार्ड यूजर जो हर महीने अपने बिलों का पूरा भुगतान करता है, उसका क्रेडिट कार्ड पर लगने वाली ब्याज दर से कोई लेना-देना नहीं है।
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