Good Anger – How Rethinking Rage Can Change Our Lives, Book by Sam Parker

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लंदन, जब कोई कहता है कि मुझे गुस्सा नहीं आता’, तो असल में वह उसे दबा रहा होता है। यह दबाव खुद के लिए नुकसानदायक हो सकता है…। लेखक सैम पार्कर ( Sam Parker ) कहते हैं, ‘अंग्रेजी में ‘एंगर’ को अक्सर ‘एग्रेशन’ या ‘वायलेंस’ से जोड़ दिया जाता है, जबकि ये तीनों अलग हैं। गुस्सा भावना है, जबकि आक्रामकता व्यवहार।’ किताब ‘गुड एंगर… हाऊ रीथिंकिंग रेज कैन चेंज अवर लाइव्स’ ( Good Anger – How Rethinking Rage Can Change Our Lives ) में पार्कर ने इस बात पर जोर दिया है कि गुस्से को सही तरह समझना और व्यक्त करना जरूरी है, ताकि यह आक्रामकता में न बदले। आखिर कैसे पहचानें इस स्थिति को और संभालने के सही तरीके क्या हो सकते हैं, बता रहे हैं पार्कर

गुस्सा- चिंता का गहरा संबंध:

मुझे लगता था कि मैं गुस्सा नहीं होता। पर जब अपने गुस्से को समझना शुरू किया, तो चिंता घटने लगी। दरअसल गुस्सा व चिंता वैज्ञानिक रूप से जुड़े हैं। गुस्से को दबाते हैं, तो वह चिंता के रूप में बाहर आता है। मानसिक संतुलन के लिए इसे पहचानना व स्वीकार करना जरूरी है। गुस्सा उतना ही स्वाभाविक है जितना कि डर, दुख या खुशी।

जरूरतें समझ पाते हैं:

सामने वाले की गलती बताने के बजाय गुस्सा हमें स्पष्ट करता है कि हमारे भीतर कौन-सी जरूरतें पूरी नहीं हो रही हैं। यह पुराने दर्द की ओर भी संकेत करता है। गुस्सा संतुलित रूप से महसूस किया जाए, तो ऊर्जा और दृढ़ता का स्रोत बन सकता है।

महिलाएं भी गुस्से में बराबरः

यह धारणा गलत है कि महिलाएं, पुरुषों से कम गुस्सा करती हैं। रिसर्च बताती है कि महिलाएं गुस्से को अक्सर दबाती हैं। चुप हो जाती हैं, टालने लगती हैं। तुलनात्मक रूप से गुस्से की भावना में 6% अंतर रह गया है। यानी महिलाएं भी उतना ही गुस्सा महसूस करती हैं, पर जाहिर नहीं करतीं।

ऐसे संभालेंः

‘मेटा-अवेयरनेस’ यानी खुद को बाहर से देखना मददगार है। जब बहस शुरू हो, तो ‘टाइम आउट’ लेना बेहतर होता है। गुस्से से उपजी ऊर्जा को घर के कामों में लगा सकते हैं। बहस के दौरान असहजता जाहिर करना भी मदद करता है। जैसे- ‘मैं बहुत गुस्से में हूं, इसलिए शांत रहकर बात करना मुश्किल हो रहा है।’ इससे बहस शुरू होने से पहले ही थम सकती है।

समझना जरूरीः

मैंने खुद से सवाल किए- अगर मुझे गुस्सा आता, तो किन बातों पर ?’ तो कई पुरानी बातें सामने आईं। लगा कि इन बातों पर कदम उठाने की जरूरत नहीं, पर उन्हें बाहर निकालना राहत देने वाला था।

हासिल क्या:

गुस्से के पल बीत जाने के बाद, यह तय करना जरूरी है कि कोई कदम उठाना है या नहीं। कभी-कभी स्पष्ट बात जरूरी है, तो कभी भावना स्वीकार करना काफी है। अब गुस्सा आता है, तो सोचता हूं ‘यह सूचना है।’ यानी यह भावना कुछ कह रही है, जिसे समझना जरूरी है। बौद्ध गुरु थिक न्यात की भी सीख यही है… ‘गुस्से को कोमलता से थामें, जैसे मां बच्चे को थामती है।’- सैम पार्कर

Good Anger – How Rethinking Rage Can Change Our Lives, Book by Sam Parker

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