Health Tracker Devices : अपने हेल्थ का मूल्यांकन देखकर तनाव में आ रहे लोग।

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Health Tracker Devices : अपने हेल्थ का मूल्यांकन देखकर तनाव में आ रहे लोग।
‘एक करीबी दोस्त के घर डिनर करते वक्त मैं बार-बार टेबल के नीचे मोबाइल ले जाकर कुछ चेक कर रही था। थोड़ा अजीब था… पर मुझे एहसास हो गया कि मैं स्मार्टवॉच एप देखने की आदी हो गई हूं। मुझे लगा था कि घंटेभर रनिंग के बाद ट्रेनिंग स्टेटस के नंबरों में बड़ा अंतर आएगा, पर कोई बदलाव नहीं दिखा। मैं चिंतित हो गई… यह कहना है लिंडसे कोर्स का। लिंडसे अकेली नहीं हैं। इन दिनों ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी इसी तरह ट्रैक करके तनाव में आ रहे हैं।
ब्रिटेन के डेटा साइंटिस्ट एडम एरिक्सन भी बॉट से इसी तरह परेशान हैं। बॉट उनसे दिन में चार बार पूछता है कि वह कैसा महसूस कर रहे हैं, सब ठीक है? बार-बार यह सुनकर एडम. ‘को लगता है कि वाकई में कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं। यूगॉव के ताजा सर्वे में दावा किया गया है कि 40% ब्रिटिश नागरिक वियरेबल डिवाइस पहनते हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर अन्ना लेम्बके कहती हैं, ‘ट्रैकिंग हमारी आदतों को ड्रग्स की तरह प्रभावित कर सकती है। उन्होंने कहा ‘हम इन डिवाइस को लेकर उतने ही जुनूनी हो सकते हैं, जितना किसी अन्य लत को लेकर। ये डिवाइस सिर्फ हमारे व्यवहार को रिकॉर्ड नहीं करतीं, बल्कि उसे प्रभावित भी करती हैं। हम बाहरी मान्यता पर निर्भर हो जाते हैं। जैसे- वजन तौलना, बीएमआई मापना या स्टेप काउंट करना। लेकिन अच्छी सेहत सिर्फ नंबर से तय नहीं होती। अन्ना कहती हैं कि कुछ लोग डेटा को लेकर इतने जुनूनी हो जाते हैं कि वे खुद को बेवजह दबाव में डाल लेते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति रोज 10 हजार कदम चलने का लक्ष्य रखता है और किसी दिन पूरा न हो तो उसे निराशा होती है। कई कंपनियां यूजर्स का डेटा स्टोर करती हैं, पर स्पष्ट नहीं बतातीं कि डेटा का इस्तेमाल कैसे और कहां होगा?

ब्रेक की जरूरत

ऑस्ट्रिया के टेक वर्कर फेलिक्स क्राउजे टूथब्रश, धूप में बिताया वक्त और नींद जैसी चीजें ट्रैक कर रहे थे। वे कहते हैं, ‘मेरी सेहत एप में सिमट गई थी। वर्कआउट से भी तभी संतुष्टि मिलती थी, जब एप देख लेता था। आखिर मैंने ब्रेक लेने का फैसला लिया। गिनती व ट्रैकिंग बंद कर दी। अब मैं रनिंग से लौटता हूं, तो सिर्फ अच्छा महसूस होता है, बिना नंबर के… और यह एहसास सिर्फ मेरा होता है।’

कई बार गलत अलर्ट भेजते हैं डिवाइस, स्थिति बिगड़ सकती है।

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगोन के कार्डियोलॉजिस्ट एडम स्कोलनिक कहते हैं कि लगातार ट्रैकिंग हार्ट व डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों के लिए बेहतर है। एक तरफ यह अच्छा है क्योंकि मरीज असामान्य हार्ट रिदम को पहले ही पकड़ सकते हैं। दूसरी तरफ कई बार यह गलत अलर्ट देता है, जिससे सामान्य हार्ट रिदम को भी असामान्य समझ लिया जाता है। डॉ. अन्ना कहती हैं, ‘डेटा ट्रैकिंग के फायदे व नुकसान दोनों हैं। यह हमें आदतों को समझने और सुधारने में मदद कर सकता है, पूरी तरह इन डेटा पर निर्भर न हों। अपने शरीर की भी सुनें। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी एप या डिवाइस हमें खुद से बेहतर नहीं जान सकता।’
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