Mahakumbh Mela 2025 : धार्मिक समागम मे एसे भी साधु संत पहुच रहे जिन्होंने कर रखी है PHD. आइए जानते है इनके बारे मे।
Mahakumbh Mela 2025 भारत में सबसे बड़ा धार्मिक समागम है। इसमें देश विदेश से करोड़ों लोग शामिल होते हैं। साल 2025 में Mahakumbh mela prayagraj में शुरू हो चुका है। Mahakumbh Mela हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। इस बार भी Mahakumbh Mela में साधु संतों के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। कई साधु संत अपनी सिद्धि से अलग पहचान बनाए हुए हैं। इसबीच एक ऐसे संत आकर्षण का केंद बन चुके हैं, जिनके दर्शन के लिए हर कोई व्याकुल है। संत डॉ. योगानदं महाराज महाकुंभ मेले में आए हैं। उन्होंने Banaras Hindu University से धर्म और Science में PHD की है।

संत योगानंद गिरी मौजूदा समय में श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा के सदस्य हैं। उन्होंने अपने शोध के दौरान यह सिद्ध किया कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। उनका मानना है कि “धर्म के बिना विज्ञान और विज्ञान के बिना धर्म अधूरा है।” इसके अलावा उन्होंने धर्म विज्ञान में परास्नातक (एमए) की डिग्री भी हासिल की है।
सनातन धर्म के लोग पहले से ही वैज्ञानिक हैं – संत योगानंद महाराज
Mahakumbh Mela में संत डॉक्टर योगानंद गिरी ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए कहा कि सनातन धर्म दुनिया का ऐसा धर्म है। जिसमें पहले से ही धर्म और विज्ञान एक साथ शामिल है। आदिकाल से ही पीपल की पूजा और अन्य वृक्षों की पूजा सनातन धर्म में होती है। वहीं विज्ञान मानता है कि पीपल के वृक्ष से निकलने वाला ऑक्सीजन काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा सनातन धर्म में घर के आगे तुलसी का पौधा लगाने की परंपरा है। विज्ञान इसको कहता है कि तुलसी का पौधा सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देता है। इसको घर के आगे लगाने से घर वालों को उचित ऑक्सीजन मिलता रहती है। योगानंद गिरि ने आगे कहा कि विज्ञान से पहले यह सब सनातन धर्म की देन है।
आखिर 12 साल बाद क्यों लगता है Mahakimbh Mela?
दरअसल, कहा जाता है कि है कि देवताओं और असुरों के बीच अमृत पाने को लेकर लगभग 12 दिनों तक लड़ाई चली थी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 सालों के बराबर होते हैं। यही वजह है कि 12 साल बाद महाकुंभ लगता है। इस लड़ाई के दौरान अमृत की कुछ बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं। जिनमें से चार स्थान पृथ्वी पर स्थित हैं। इसमें Prayagraj, Haridwar, Ujjain और Nasik शामिल हैं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। शास्त्रों में प्रयागराज को तीर्थ राज या ‘तीर्थ स्थलों का राजा’ भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पहला यज्ञ ब्रह्मा जी ने यहीं पर किया था। महाभारत समेत कई पुराणों में इसे धार्मिक प्रथाओं के लिए जाना जाने वाला एक पवित्र स्थल माना गया है।

कैसे तय होता है, कहां लगेगा कुंभ मेला
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब बृहस्पति ग्रह, वृषभ राशि में हों और इस दौरान सूर्य देव मकर राशि में आते हैं। तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है। ऐसे ही जब गुरु बृहस्पति, कुंभ राशि में हों और उस दौरान सूर्य देव मेष राशि में गोचर करते हैं। तब कुंभ हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। इसके साथ ही जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में विराजमान हो। तब महाकुंभ नासिक में आयोजित किया जाता है। वहीं, जब ग्रह बृहस्पति सिंह राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों, तो कुंभ का मेला उज्जैन में लगता है।
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