Mutual Fund Investment Strategy India : पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज और म्यूचुअल फंड के बीच होगी फंड्स की नई कैटेगरी, कम से कम 10 लाख रुपए करने होंगे निवेश।
ऊंचा रिटर्न चाहने वालों को 1 अप्रैल से निवेश का एक नया विकल्प मिलने वाला है। स्पेशलाइज्ड इन्वेस्टमेंट फंड्स यानी एसआईएफ म्यूचुअल फंड और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज (पीएमएस) के बीच की एक नई कैटेगरी होगी। इसमें कम से कम 10 लाख रुपए निवेश करने होंगे। अभी एसेट मैनेजमेंट इंडस्ट्री से होती में म्यूचुअल फंड की स्कीम्स 100 रुपए शुरू हैं। पर पीएमएस में निवेश की न्यूनतम सीमा 50 लाख रुपए है। अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स (एआईएफ) में तो कम से कम एक करोड़ रुपए निवेश करने होते हैं। बहरहाल, एसआईएफ में निवेशकों को हेजिंग स्ट्रैट्जी, कस्टमाइज्ड पोर्टफोलियो और बेहतर एसेट एलोकेशन की सुविधा मिलेगी। इसके अलावा नियंत्रित जोखिम की सहूलियत भी मिलेगी। सेबी ने एसआईएफ के लिए 27 फरवरी को रेगुलेटरी फ्रेमवर्क जारी किया है।
इक्विटी में निवेश की एडवांस स्ट्रैट्जी का लाभ
फंड हाउस एसआईएफ के तहत ओपन-एंडेड, क्लोज्ड- एंडेड या इंटरवल स्ट्रक्चर में निवेश की एडवांस स्ट्रैट्जी लागू कर सकेंगे। एसआईएफ को पारंपरिक म्यूचुअल फंड्स की तरह देखा जा सकता है, लेकिन इनमें 25% तक डेरिवेटिव्स (वायदा) की अनुमति होगी। फिलहाल, म्यूचुअल फंड्स में डेरिवेटिव्स का इस्तेमाल सिर्फ हेजिंग और पोर्टफोलियो रीबैलेंसिंग के लिए किया जाता है।
तीन तरह के फंड में निवेश की सुविधा
- 1) शॉर्ट फंड कम से कम 80% इक्विटी में निवेश करेंगे और 25% तक शॉर्ट पोजिशन ले सकेंगे।
- 2) एक्स-टॉप 100 लॉन्ग-शॉर्ट फंड मार्केट कैप के लिहाज से टॉप-100 से बाहर की कंपनियों में कम से कम 65% निवेश कर सकेंगे। इसमें भी 25% तक शॉर्ट पोजिशन की अनुमति होगी।
- 3) सेक्टर रोटेशन लॉन्ग-शॉर्ट फंड 4 सेक्टर्स में कम से कम 80% निवेश कर सकेंगे। सेक्टर स्तर पर 25% तक शॉर्ट पोजिशन भी ले सकेंगे।
क्या एसआईएफ फायदेमंद होंगे?
- a) 25% डेरिवेटिव्स की अनुमति से फंड अधिक रिटर्न कमा सकते हैं। लॉन्ग साइड पर लीवरेज बढ़ाया जा सकता है और शॉर्टिंग के जरिये भी रिटर्न बढ़ाया जा सकता है। पहले ये सुविधा केवल धनाढ्य निवेशकों को थी।
- b) एसआईएफ से निवेशकों को ज्यादा सॉफिस्टिकेटेड, लेकिन जटिल प्रोडक्ट्स तक पहुंच मिलेगी। इनमें डेरिवेटिव्स भी शामिल होंगे। एसआईएफ में निवेश की अलग-अलग सीमाएं हैं। इससे फंड मैनेजर्स को ज्यादा लचीलापन मिलेगा।
- c) सेबी ने एसआईएफ के लिए पिक्टोरियल रिस्क मीटर (रिस्क बैंड 1 से 5) पेश किया है। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी। निवेशक सही फैसले कर सकेंगे।
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