SUV Cars Popular in India : भारत में बिकने वाली हर दो में से एक कार एसयूवी है

SUV Cars Popular in India : भारत में बिकने वाली हर दो में से एक कार एसयूवी है
कभी गाड़ियां एक जगह से दूसरी जगह तक का सफर करने का साधन मात्र हुआ करती थीं। मगर अब ऐसा नहीं है। मोटर्स के एक सीनियर ऑफिसर कहते हैं, ‘अब कारों को परिवार की रक्षक के रूप में बेचा जा रहा है। वह बड़ी, भारी और दमदार होनी चाहिए।’ दरअसल, इन दिनों तमाम कार डीलर्स मानो कार नहीं, युद्धक टैंक बेच रहे हैं। मजबूत बॉडी, शानदार बिल्ड क्वालिटी, ऊंची ड्राइविंग पोजिशन, किसी भी राह में कोई परेशानी नहीं…। कुछ कार कंपनियों ने तो अपने एसयूवी मॉडल्स को ‘मस्कुलर’ (मर्दाना), ‘इम्पोजिंग’ (रौबदार) और ‘अग्रेसिव’ (आक्रामक) जैसे शब्दों से वर्णित किया है।
अब 10 में से 6 कारें एसयूवी
सोसाइटी ऑफ इंडियन मोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के 25 वर्षों के डेटा के ‘द केन’ द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार एसयूवी की बिक्री अब हैचबैक से आगे निकल रही है। 2000-2010 के दशक में सबसे ज्यादा बिकने वाले 10 यात्री वाहनों की सूची में नियमित रूप से केवल दो एसयूवी शामिल होती थीं- महिंद्रा बोलेरो और महिंद्रा स्कॉर्पियो । लेकिन ये भी ज्यादातर ट्रैवल एजेंसियों द्वारा और ग्रामीण क्षेत्रों में इस्तेमाल की जाती थीं। फिर अगले दशक (2010-2020) में टोयोटा इनोवा और मारुति अर्टिगा ने इस सूची में जगह बनाई। लेकिन इनकी भी ट्रैवल इंडस्ट्री में ही मांग थी। फोर्ड की कॉम्पैक्ट एसयूवी ‘ईकोस्पोर्ट’ ने भी कुछ समय के लिए इस सूची में जगह बनाई, लेकिन असली बदलाव 2020 के बाद आया। साल 2024 में भारत में बिकने वाली शीर्ष 10 कारों में से 6 कारें कॉम्पैक्ट या फुल साइज एसयूवी थीं। इनमें मारुति सुजुकी की अर्टिगा (फुल-साइज मल्टी-यूटिलिटी वाहन) तीसरे स्थान पर और हुंडई की क्रेटा पांचवें स्थान पर थी। पहला स्थान टाटा पंच ने हासिल किया, जो एक कॉम्पैक्ट एसयूवी है।
एसयूवी मतलब ‘वैल्यू फॉर मनी !
स्कोडा के नोएडा स्थित एक डीलर के पास आए एक खरीदार ने कहा, ’40 लाख रुपए की कोडियाक खरीदना मेरे लिए संभव नहीं है। लेकिन 12 लाख की काइलाक मुझे लगभग वही सैटिस्फैक्शन देती है।’ विभिन्न कार डीलरशिप पर करीब एक दर्जन संभावित खरीदारों से बात की गई, लेकिन कोई भी हैचबैक खरीदना नहीं चाहता। लगभग सभी कार डीलर इस बात पर सहमत थे कि एक खरीदार को कॉम्पैक्ट एसयूवी बेहतर ‘वैल्यू फॉर मनी’ का अनुभव कराती है। कार डीलर्स व मेकर्स भी इस खरीदारी को बढ़ावा देने के पक्ष में हैं, क्योंकि इससे उनकी जेब में अधिक पैसा आता है।
उद्योग से जुड़े तीन शीर्ष अधिकारियों के अनुसार एक हैचबैक और एक कॉम्पैक्ट एसयूवी की निर्माण लागत में आमतौर पर 10 से 15 फीसदी का ही अंतर होता है, विशेष रूप से जब वे एक ही प्लेटफॉर्म पर बनाई जाती हों। लेकिन एसयूवी की खुदरा कीमत उनके अतिरिक्त कॉस्मेटिक फीचर्स की वजह से 25 से 50 फीसदी तक अधिक होती है। उदाहरण के लिए मारुति सुजुकी की बलेनो (हैचबैक) व फ्रॉक्स (क्रॉसओवर), हुंडई की आई-20 (हैचबैक) व वेन्यू (कॉम्पैक्ट एसयूवी) और होंडा की जैज (हैचबैक) व WR-V (क्रॉसओवर) को देखें तो इन सभी मॉडलों की निर्माण लागत में मामूली अंतर है। फिर भी हैचबैक का टॉप-एंड मॉडल एसयूवी की तुलना में कम से कम 30 फीसदी सस्ता होता है।
हादसों की अधिक आशंका!
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में सालाना सड़क दुर्घटना रिपोर्ट तैयार करने वाली अनुसंधान टीम के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ‘एसयूवी की बढ़ती बिक्री का यह ट्रेंड सुरक्षा के नजरिये से घातक हो सकता है।’ 2010 से 2022 के बीच कारें, जीप, टैक्सियां औसतन हर 10 में से 2 घातक हादसों में शामिल थीं। उक्त अधिकारी ने बताया, ‘2023 व 2024 के बीच यह संख्या 30% के करीब पहुंच गई है।’
अधिकारी कहते हैं कि सड़क हादसों के संदर्भ में एसयूवी क्रेज का वास्तविक असर 2025 के बाद और अधिक स्पष्ट होगा। 2-4 साल पुरानी कारों से सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं, क्योंकि इस समय तक ड्राइवर गाड़ी चलाने में अधिक सहज हो जाते हैं और तेजी से गाड़ी चलाने लगते हैं। 2023 और 2024 में भारत में बिकने वाली हर दो में से एक कार एसयूवी है, जिसका मतलब है कि 2026 के अंत तक ये वाहन ‘खतरे के दायरे में आ जाएंगे।
अपार्टमेंट्स में पाकिंग प्रॉब्लम
एक बड़ी समस्या बिल्डरों की भी है। दिल्ली के द्वारका और गुरुग्राम में बिल्डरों को एक नई समस्या से जूझना पड़ रहा है और यह है पार्किंग की समस्या। गुरुग्राम स्थित एक रियल एस्टेट डेवलपर के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अगर पहले एक पार्किंग क्षेत्र में 100 कारें फिट हो सकती थीं, तो अब उसी जगह पर अधिकतम 70-75 कारें ही आ पाएंगी।’ उन्होंने ‘द केन’ के साथ एक 12 साल पुरानी हाउसिंग सोसायटी में जाकर पुराने और नए पार्किंग मानकों का अंतर समझाया। उनके मुताबिक पहले प्रति कार 3.5-3.9 मीटर लंबाई और 1.6 मीटर चौडाई की जगह अलॉट की जाती थी।
ज्यादातर कारें इन मापदंडों में फिट हो जाती थीं और कुछ अपवादों को समायोजित कर लिया जाता था। लेकिन अब कारों के लिए पुराने मापदंड अपवाद बन गए हैं, खासकर बहुमंजिला इमारतों में, जहां बड़ी गाड़ियों के लिए अलग से जगह निकालना मुश्किल हो रहा है।
सड़कों के लिए पड़ रही भारी
एसयूवी भारतीय सड़कों के लिए भी बहुत भारी साबित हो रही हैं। उदाहरण के लिए मारुति सुजुकी की एसयूवी ‘फ्रोंक्स’ उसके हैचबैक मॉडल ‘बलेनो’ से 50 से 100 किलोग्राम अधिक वजनी है। नतीजा ? इस तरह की लगभग तमाम एसयूवी सड़कों पर अतिरिक्त दबाव डालती हैं, जिससे सड़कें तेजी से खराब होती हैं।
केंद्रीय परिवहन मंत्री के साथ कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके एक वरिष्ठ सिविल इंजीनियर कहते हैं कि भारतीय सड़कें ट्रकों और लॉरियों का भार सहने के लिए डिजाइन की गई हैं, जो कारों की तुलना में कहीं अधिक भारी होते हैं। लेकिन भारी वाहन आमतौर पर शहरों की सड़कों पर प्रतिबंधित होते हैं या उन्हें बहुत कम अनुमति होती है। लेकिन जब औसत भार लगातार बढ़ेगा तो सबग्रेड लेयर (सड़क की नींव) कमजोर होने लगती है। यह सड़कों के धंसने या गड्ढों में बदलने की वजह बनती है।
दुर्घटनाओं की पहले से ज्यादा आशंका क्यों?
एसयूवी (चाहे कॉम्पैक्ट हो या लार्ज) पैदल यात्रियों और दो पहिया वाहन चालकों के लिए ज्यादा घातक क्यों होती है? इसकी एक वजह है  इनका ऊंचा बोनट । इंटरनेशनल ट्रांसपोर्टेशन इकोनॉमिक्स एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार बोनट की ऊंचाई में महज 10 सेमी की वृद्धि उनके मुताबिक ऊंची बोनट वाली गाड़ियां 20 किमी/घंटा की रफ्तार पर भी स्थाई चोट या मृत्यु का कारण बन सकती हैं। पैदल यात्रियों की मृत्यु दर में 22% तक की वृद्धि कर सकती है। इसकी पुष्टि दिल्ली स्थित एम्स के एक ट्रॉमा सेंटर के डॉक्टर भी करते हैं।

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