Manoj Kumar Death News Hindi : नहीं रहे “भारत कुमार”।

फिल्मों से देशभक्ति का जज्बा जगाने वाले अभिनेता व निर्देशक मनोज कुमार का शुक्रवार तड़के 3:30 बजे मुंबई में निधन हो गया। वे 87 साल के थे। मनोज लंबे समय से लिवर सिरोसिस बीमारी से जूझ रहे थे। मनोज कुमार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के कहने पर 1967 में ‘उपकार’ फिल्म बनाई। इसके गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले…’ की अपार लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें ‘भारत कुमार’ कहा जाने लगा।
फिल्मों में उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ष 1992 में पद्मश्री और 2016 में सबसे प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से नवाजा गया। उन्होंने 7 फिल्म फेयर अवॉर्ड भी जीते। उनका जन्म 24 जुलाई 1937 को अविभाजित भारत के एबटाबाद (अब पाकिस्तान में) में पंजाबी हिंद ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बंटवारे के बाद परिवार दिल्ली आया। फिल्मों के बाद राजनीति में भी आए। 2004 में भाजपा के सदस्य बने। उनकी अंत्येष्टि शनिवार को होगी। परिवार में पत्नी शशि और दो बेटे हैं।
मनोज को 1965 में भगत सिंह की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘शहीद’ से बुलंदी मिली। फिल्म के बाद वे भगत सिंह की मां विद्यावती से मिले थे, जिन्होंने कहा था- तुम भगत जैसे दिखते हो। 1999 में उनके द्वारा निर्देशित आखिरी फिल्म जय हिंद भी ‘देशभक्ति’ पर आधारित थी। देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों में शहीद, उपकार, क्रांति, पूरब और पश्चिम प्रमुख हैं।

‘देश में राष्ट्रवाद के उफान में सबसे बड़ा योगदान मनोज कुमार का था’ – शत्रुघ्न सिन्हा

क्रांति समेत कई हिट फिल्मों में मनोज कुमार के सह-अभिनेता रहे शत्रुघ्न सिन्हा बताते हैं- ‘राष्ट्रवाद उनमें कूट-कूट कर भरा था। राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रवाद को जो लोकप्रियता मनोज की फिल्मों या उनके आचरण की बदौलत मिली, वह अभूतपूर्व थी। देश में राष्ट्रवाद का जो उफान दिखता है, उसमें बड़ा योगदान मनोज का है। ‘जय जवान, ‘जय किसान’ के नारे को फिल्म ‘उपकार’ के जरिये सबसे ज्यादा बुलंद और मजबूत करने वाले मनोज कुमार ही थे।
मुझे याद है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री दिल्ली के गोलचा सिनेमा में मनोज की फिल्म ‘उपकार’ देखने आए थे। शास्त्रीजी को फिल्में देखने का शौक नहीं था। इसलिए वे महज 10 मिनट के लिए फिल्म देखने आए थे, लेकिन इतने मंत्रमुग्ध हुए कि तीन घंटे की पूरी फिल्म देखने के बाद ही उठे।
भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को जो क्षति सुनील दत्त या लता मंगेशकर के जाने से हुई, वैसी ही मनोज जी के जाने से भी हुई है। भले ही उन्हें कई अवॉर्ड्स मिले हों, लेकिन उनके कद के सामने सभी बौने थे। वे सही मायने में भारत रत्न थे। मनोज मेरी पत्नी को बहन मानते थे और उनसे राखी बंधवाते थे। हमारे यहां जुड़वां बच्चे पैदा हुए तो ‘लव कुश’ नाम उन्होंने ही दिया था।’

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